देहरादून। कांग्रेस ने कुछ दिन पहले उत्तराखंड की डोईवाला विधानसभा सीट से युवा नेता मोहित उनियाल को प्रत्याशी घोषित किया था। उनियाल का नाम कांग्रेस प्रत्याशियों की दूसरी लिस्ट में था। उन्होंने पूरे उत्साह से नामांकन और प्रचार की तैयारियों शुरू कर दीं। समर्थकों ने उनके पक्ष में माहौल बनाना शुरू कर दिया, पर दो दिन में ही अचानक कुछ ऐसा हुआ कि कांग्रेस ने अपना ही निर्णय वापस ले लिया और मोहित उनियाल का टिकट काट दिया गया। इससे उनके समर्थक हतोत्साहित हुए और उनमें निराशा छा गई।
जैसा कि अमूमन होता है, प्रत्याशी नहीं बनाने पर बगावत या फिर विरोध के स्वर सुनाई देते हैं, पर मोहित ने कार्यकर्ताओं को ऐसा कोई कदम उठाने से साफ मना कर दिया, जो उनकी पार्टी के खिलाफ जाए। उन्होंने कार्यकर्ताओं की बैठक में किसी भी लाइन को छोटा करने के लिए रबड़ ( Eraser) के इस्तेमाल की बजाय पेंसिल से एक बड़ी लाइन खींचने की सलाह दी।
उन्होंने साफ-साफ कहा, जनता की सेवा ही तो करनी है, जो किसी भी पद पर रहे बिना भी हो सकती है। वो कार्यकर्ताओं से कहते हैं, केवल विधायकी का चुनाव लड़ना ही जीवन का अंतिम मकसद नहीं हो सकता। यदि वो अभावों में जी रहे किन्हीं दो बच्चों को शिक्षित करने की जिम्मेदारी सही तरह से निभा लेते हैं तो भी जीवन का बड़ा उद्देश्य पूरा हो जाता है।
उत्तराखंड में चुनाव नामांकन का शुक्रवार को अंतिम दिन था। मोहित उनियाल सुबह ही कार्यकर्ताओं और समर्थकों से मुलाकात के बाद डोईवाला विधानसभा के दूरस्थ गांवों की यात्रा पर निकल गए। रायपुर ब्लाक का गांव बड़कोट, जो राजधानी देहरादून से लगभग 30 किमी. भी दूर नहीं होगा, वहां जाने का निर्णय लिया।
बड़कोट गांव के लिए पहले थानो और फिर सिंधवाल गांव के पुल को पार करना होता है। पुल पार करते ही जंगल का कच्चा रास्ता है।यहां से नाहीकलां गांव पांच किमी. दूर है। नाहीकलां तक कच्चा मार्ग है, जिस पर बाइक और फोरव्हीलर से जा सकते हैं, पर रिस्क बहुत है। तीखे मोड़ हैं और टायर स्किट होने का खतरा बना रहता है।
नाहींकला से शुरू होता है, बड़कोट गांव तक चार किमी. का पैदल रास्ता, जो पहले खेतों के बीच से होकर गुजरता है और फिर एक तरफ खाई व दूसरी तरफ पहाड़ वाला नजारा पेश करता है। रास्ते में पहाड़ से लुढ़क कर आए पत्थरों को तोड़कर बिछाया गया है। कहीं-कहीं इन्हीं पत्थरों के बंधे लगे हैं, ताकि बरसात में रास्ता न बह जाए। बड़कोट गांव में एक ही परिवार रहता है और इस गांव में बिजली नहीं है।
मोहित उनियाल,उनके साथी पूर्व प्रधान उमेद बोरा और इस संवाददाता ने बड़कोट तक पहुंचने के लिए चार किमी. का संकरा, पथरीला, ऊबड़-खाबड़ रास्ता तय किया। इतना ही रास्ता वापस आने के लिए भी। नाहीकलां से वहां तक जाने में डेढ़ घंटा लगा। रास्ता कई जगह से टूटा है। बीच में बड़े पत्थर हैं। यहां बाइक से भी नहीं जा सकते। यहां बरसात में ऊंचाई से गदेरे पत्थरों को साथ लेकर आते हैं। ग्रामीण बताते हैं, रास्तेभर जंगली जानवरों का खतरा रहता है। यहां भालू और गुलदार का डर है।
मोहित उनियाल, वर्तमान में राजीव गांधी पंचायतराज संगठन के प्रदेश संयोजक हैं। वो दो दिन पहले बतौर कांग्रेस प्रत्याशी चुनाव प्रचार में जुटे थे, अब वो कांग्रेस से प्रत्याशी नहीं हैं और न ही चुनाव लड़ रहे हैं। पर, उत्तराखंड के दुर्गम गांवों की दिक्कतों को सिस्टम तक पहुंचाने की पहल लगातार जारी है।
उन्होंने बड़कोट गांव में पलायन की वजह को जाना और वहां रहने वाले परिवार से मुलाकात की। उनका कहना है कि बेटियों की शिक्षा पर सरकार को ध्यान देने की जरूरत है। पलायन को रोकने के लिए आजीविका संसाधनों पर गंभीरता से बात होनी चाहिए।
इससे पहले मोहित उनियाल डोईवाला और नरेंद्रनगर क्षेत्र के कई गांवों का भ्रमण कर चुके हैं और कहते हैं, उनकी यह मुहिम लगातार जारी रहेगी। पिछले साल सितंबर में उन्होंने हल्द्वाड़ी गांव के बच्चों के साथ उनके धारकोट स्थित स्कूल तक लगभग आठ किमी. का पैदल सफर किया, जिसके माध्यम से शिक्षा के लिए मुश्किलों को सामने लाए थे।