PM से लेकर CM और संस्कृत शिक्षा मंत्री को भेजा छ: सूत्रीय मांग पत्र
देवभूमि उत्तराखंड में संस्कृत के अस्तित्व को बचाने के लिए आज प्रदेश के संस्कृत विद्यालय महाविद्यालयों में व्याप्त विभिन्न संगठनों ने आज एक मंच पर आकर बनाया संयुक्त मोर्चा संस्कृत विद्यालय- महाविद्यालय शिक्षक कर्मचारी संयुक्त मोर्चा उत्तराखंड के प्रांतीय अध्यक्ष बने डॉ. रामभूषण बिजल्वाण एवं प्रांतीय महासचिव बने डॉ.नवीन पंत देश के प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री और संस्कृत शिक्षा मंत्री को भेजा छ: सूत्रीय मांग पत्र ।।
देवभूमि उत्तराखंड की द्वितीय राजभाषा संस्कृत शिक्षा के मूल केंद्र संस्कृत विद्यालय-महाविद्यालयों के अस्तित्व को बचाने के लिए अधोलिखित समस्याओं के त्वरित निराकरण के संबंध में ।
उपर्युक्त विषयक अत्यंत खेद के साथ निवेदन है कि आजादी के 75 वर्ष बाद भी देवभूमि उत्तराखंड में ब्रिटिश काल से पोषित संस्कृत विद्यालय- महाविद्यालय आज भी सामान्य शिक्षा के विद्यालय-महाविद्यालयों के समकक्ष मुख्यधारा में आने की लड़ाई लड़ रहे हैं इतना ही नहीं जो संस्थाएं उत्तर प्रदेश के समय से महाविद्यालय स्तर में वर्गीकृत/मान्यता एवं अनुदानित हैं उन संस्थाओं को आज सनातन संस्कृति और संस्कृत की पोषक भाजपा सरकार के ही कार्यकाल में अवनत कर माध्यमिक स्तर के विद्यालय बना दिया गया है जिन विद्यालयों को विभाग के पूर्व आदेशों के क्रम में इंटरमीडिएट स्तर की वित्तीय स्वीकृति प्रदान की गई थी उनको जूनियर स्तर तक सीमित कर दिया है जो बड़ा ही हास्यास्पद है ।
आज से पांच-दशक पूर्व से जितने पद सृजित हैं उन पदों के अलावा आज तक एक भी नया पद सृजन नहीं हुआ है कक्षा से 06 से स्नातकोत्तर पर्यंत महज 02 से 03 पद ही सृजित हैं और सैकड़ों छात्र इन महाविद्यालय-विद्यालयों में अध्ययनरत हैं ।
संस्थाओं का क्रमबद्ध उन्नतिकरण तो हमेशा देखा गया है और यही एक संवैधानिक प्रक्रिया भी रही है लेकिन उत्तराखंड संस्कृत शिक्षा विभाग का अजूबा कृत्य देखिए संस्थाओं को उन्नत करने की बजाय लगातार नियम विरुद्ध अपने ही पूर्व आदेशों का अनदेखा कर अवनत किया जा रहा है और जो संस्थाएं नहीं कर रही है उनको निचले स्तर के अधिकारी लगातर अनुदान बन्द करने की धमकी देकर डरा-धमकाकर जबरन करवा रहे हैं।
इतना ही नहीं संस्कृत विद्यालय-महाविद्यालयों में जो शिक्षक जिस पद पर सेवा में आया है वह दुर्भाग्य से उसी पद पर सेवानिवृत होने के लिए बाध्य है क्योंकि उसके लिए विभाग द्वारा पदोन्नति के कोई अवसर नहीं प्रदान किए गए हैं अधिकांश संस्थानों में लिपिक-परिचारक तक के पद सृजित नहीं है वर्षों से बहुत ही निम्न मानदेय एवं बिना मानदेय के कार्य कर रहे सैकड़ों शिक्षकों के भविष्य के लिए भी विभाग के पास कोई रोडमैप तैयार नहीं है इससे बड़ा दुर्भाग्य द्वितीय राजभाषा संस्कृत का और क्या हो सकता है ।
अतः महोदय आप सभी माननीयों से संस्कृत जगत नतमस्तक होकर करबद्ध प्रार्थनीय है कि संस्कृत शिक्षा के उत्थान हेतु अधोलिखित समस्याओं का त्वरित निराकरण करने की महति कृपाकर प्रदेश में द्वितीय राजभाषा संस्कृत की संकल्पना को सार्थक करेंगे । अन्यथा की स्थिति में संयुक्त मोर्चा किसी भी ऐसे कदम उठाने के लिए बाध्य होगा जिसकी संपूर्ण जिम्मेदारी शासन और सरकार की होगी ।
1:-शासन से निर्गत 16 एवं 23 अक्टूबर के आदेश को स्थगित करते हुए दिनांक-17 फरबरी 2021 को 31 वर्गीकृत महाविद्यालयों के इतर शेष सभी संस्कृत विद्यालयों को पूर्व की भांति इंटरमीडिएट स्तर के वित्तीय मान्यता तथा सेवालाभ तत्काल प्रदान किये जाय।
2:-31 संस्कृत महाविद्यालय में से 18 महाविद्यालयों में संस्कृत विश्वविद्यालय परिनियमावली 2007,09,11 की धारा-7.4 में उध्दृत उच्चशिक्षा की अर्हता पर विभागीय अनुज्ञा/विज्ञापन/अनुमोदन (सीधी भर्ती ) से स्थायी नियुक्त 38 शिक्षकों को उच्चशिक्षा के सेवालाभ सम्बन्धी प्रकरण पर 13 मई 2022 को वित्त से वैट हुए शासनादेश को तत्काल निर्गत किया जाय तथा वर्गीकरण के उपरांत केवल महाविद्यालय स्तर पर स्वतंत्र रूप से संचालित हो रहे महाविद्यालयों के लिए पृथक आदेश जारी हो। तथा वर्गीकृत संस्कृत महाविद्यालयों के लिये पृथक नियमावली तत्काल बनाई जाए ।
3:-प्रदेश के संस्कृत विद्यालय-महाविद्यालयों में कार्यरत मानदेय प्राप्त 155 शिक्षकों का उनकी योग्यतानुरूप विद्यालय-महाविद्यालयों में तत्काल समायोजन हो तथा मानदेय सूची से वंचित 126 प्रबंधकीय शिक्षकों को तत्काल मानदेय दिया जाए।
4:-प्रत्येक शासकीय अशासकीय विभाग में संस्कृत अनुवादक के पदों का सृजन हो।
5:-प्रदेश के संस्कृत महाविद्यालयों एवं विद्यालयों में तत्काल पाठ्यक्रमानुसार पढ़ाये जा रहे विषयों के अनुरूप पदों का सृजन हो साथ ही प्रत्येक विद्यालय-महाविद्यालय को कमसेकम एक लिपिक-परिचारक-स्वच्छक के पद सृजित हों।
6:- उत्तराखण्ड संस्कृत अकादमी द्वारा 2008 से मिलने वाले शिक्षक अनुदान पुनः शुरू किया जाय व इसको केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय की भांति दिया जाय तथा उत्तराखंड संस्कृत शिक्षा निदेशालय को आवंटित भूमि कब्जामुक्त हो व उसपर शीघ्र भवन निर्माण हो ।