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Uttarakhand election 2022: कांग्रेस में विवाद के पीछे टिकटों का बंटवारा तो नहीं

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने सार्वजनिक रूप से की नाराजगी व्यक्त

देहरादून। इन दिनों उत्तराखंड में कड़ाके की ठंड है, वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ हरीश रावत का ट्वीट सियासी माहौल को गरमा रहा है। कांग्रेस के चुनावी अभियान को हरीश रावत अपने अंदाज में गति दे रहे हैं और सोशल मीडिया के माध्यम से कुछ ऐसा संवाद भी बना रहे हैं, जिससे लगता है कि कांग्रेस में उनकी नहीं, बल्कि उनके विरोधी खेमों को ज्यादा सुना जा रहा है।

हरीश रावत का बुधवार को ट्वीट मीडिया में सुर्खियां बन गया।  मीडिया में इस ट्वीट को बगावत, अंतर्कलह, प्रेशर टैक्टिस, संन्यास, विश्राम, रिटायरमेंट जैसे शब्दों से नवाजा गया। रावत को लोगों ने दूसरी पार्टी बनाने या फिर ज्वाइन करने की ,सलाह दे दी।

पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी उनके ट्वीट पर तंज कसने का मौका नहीं छोड़ा। उन्होंने तो यह तक कह दिया, जैसा बोओगे, वैसा काटोगे।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की सार्वजनिक रूप से नाराजगी व्यक्त करने के पीछे अभी तक उनको मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किए जाने से भी बढ़कर है। चर्चा है कि रावत विधानसभा चुनाव में टिकटों के बंटवारे को लेकर दबाव बनाना चाहते हैं।

हरीश रावत की राजनीति को समझने वालों का कहना है कि वो दबाव बनाकर अपनी बात मनवाने की कोशिश करते हैं। सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने वाले हरीश रावत का संवाद हमेशा संकेतों में होता है। वो कभी सीधे सीधे अपनी बात नहीं कहते। उनकी बातों के कई सियासी अर्थ निकाले जाते हैं। बुधवार को ट्वीट उनकी नाराजगी को तो दिखाता है, पर इससे कहीं ज्यादा दबाव की राजनीति को भी दर्शाता है।

वैसे तो, मीडिया में उनकी नाराजगी की कई वजह बताई जा रही हैं। 2022 के चुनाव के लिए स्वयं को कांग्रेस का मुख्यमंत्री चेहरा घोषित करने वाले हरीश रावत उस समय आहत हुए, जब कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव का बयान आया कि उत्तराखंड में कांग्रेस किसी चेहरे पर नहीं, बल्कि सामूहिक रूप से चुनाव लड़ेगी।

चुनाव की तैयारियों में जुटी कांग्रेस विधानसभा क्षेत्रों के लिए प्रत्याशियों का चयन कर रही है। इसके लिए विधानसभा क्षेत्रों में इंटरव्यू लिए गए। पार्टी में टिकटों को लेकर खेमेबंदी हो रही है। खेमों में बंटी कांग्रेस में जिस खेमे के जितने लोगों को टिकट दिए जाएंगे, उसका चुनाव के समय उतना ही दबाव रहेगा। प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव के अभी तक के रूख को लेकर हरीश रावत सहज नहीं हैं।

अंदेशा जताया जा रहा है कि दावेदारों के चयन में भी हरीश रावत को असहज न होना पडे़। इसलिए प्रत्याशियों की घोषणा से पहले ही उनकी ओर से पार्टी पर दबाव बनाने के लिए सार्वजनिक रूप से नाराजगी जताई जा रही है। उनकी नाराजगी मीडिया में सुर्खियां बनकर चुनावी समय में कांग्रेस को असहज कर रही है। अब यह तो वक्त ही बताएगा हरीश रावत अपनी इस प्रेशर पॉलिटिक्स में कितना सफल हो पाएंगे।

अब बात करते हैं, उन घटनाओं की, जिनसे हरीश रावत आहत हो रहे हैं। मीडिया में प्रकाशित एक खबर के अनुसार, पिछले दिनों एक प्रेस कान्फ्रेंस में पार्टी की सह प्रभारी ने उन्हें अपनी बात रखने से टोक दिया। हरीश रावत से कहा गया कि वह सिर्फ अमुक मुद्दे पर अपनी बात रखें, दूसरे मुद्दों को वह न छुएं। पत्रकारों के सामने घटी इस घटना पर उस वक्त तो किसी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन हरीश रावत के लिए यह अपमान का घूंट पीने जैसा था।

वहीं, 16 दिसंबर को राहुल गांधी की रैली के दौरान घटी। जब मंच पर उनके नाम के नारे लगा रहे एक समर्थक से यह कहते हुए माइक छीन लिया गया कि इस मंच से केवल कांग्रेस और राहुल गांधी जिंदाबाद के नारे लगाए जाएंगे। हालांकि उनके भाषण से पूर्व रैली में शामिल भीड़ ने हरीश जिंदाबाद के जमकर नारे लगाए।

हरीश रावत का गढ़ कहे जाने वाले कुमाऊं के कई क्षेत्रों में उनके आने के तुरंत बाद कांग्रेस नेता प्रीतम सिंह और रंजीत रावत सहित तमाम पार्टी नेताओं को वहां भेज दिया गया। माना जा रहा है, एक खेमा रावत को मजबूत स्थिति में नहीं देखना चाहता। केंद्रीय नेतृत्व भी दूसरे खेमे को बढ़ावा देकर कहीं न कहीं हरीश रावत को कमजोर करना चाहता है। ऐसे ही तमाम कारण हैं, जिनके बाद हरीश रावत ने सोशल मीडिया पर सार्वजनिक रूप से अपनी पीड़ा बयां कर दी।

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